आँखों में रहा दिल में उतर कर नही देखा,
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नही देखा,
बे –वक़्त अगर जाऊँगा ,सब चौंक पड़ेंगे,
एक उमर हुई दिन में कभी घर न्ही देखा,
जिस दिन से चला हूँ , मेरी मंज़िल पे नज़र है,
आँखों ने कभी मील का पथर नही देखा,
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा,
पथर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ , उसने मुझे छू कर नहीं देखा !
Cheers,
Saurabh
No comments:
Post a Comment